स्वतंत्रता से पूर्व भारत में विपणन प्रबंध को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता था परंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में नए- नए परिवर्तन किए गए और औद्योगिक विकास संभव हुआ। कृषि के विकास के लिए व्यापक कार्यक्रम आयोजित किए गए। देश में आयात और निर्यात के स्वरूप में भारी परिवर्तन हुआ। पूंजीगत एवं उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में विविधता पाई जाने लगी। ग्राहकों की क्रय शक्ति में प्रभावपूर्ण परिवर्तन हुए, जिसके परिणामस्वरूप उनकी आवश्यकताओं में परिवर्तन हुए और इसका प्रभाव वस्तुओं और सेवाओं की मांग पर पड़ा और उसके साथ ही साथ प्रतिस्पर्धा का जन्म हुआ और विपणन प्रबंध की सहायता से उपभोक्ताओं की अभिरुचियों, आवश्यकताओं का पता लगाकर उनकी आवश्यकता की संतुष्टि करके लाभ प्राप्त करने का प्रयत्न किया गया जिसके परिणामस्वरूप व्यावसायिक प्रबंध में विपणन प्रबंध का महत्व दिन- प्रतिदिन बढ़ता चला गया।

विपणन ज्ञान: महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

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विपणन ज्ञान: महत्वपूर्ण तथ्य SBI एबं एसोसिएट बैंक की परीक्षाओं लिए (Marketing Knowledge in Hindi)

क्रय-विक्रय बाजार के सिद्धांत, स्वभाव एवं क्षेत्र

  • मार्केटिंग उपभोक्ता केन्द्रित है जिसमें उपभोक्ता द्वारा यह निर्धारित किया जाता है कि हमे क्या बेचना चाहिए।
  • मार्केटिंग की शुरूआत एवं अंत उपभोक्ता से होती है।
  • उत्पादक उपभोक्ता के बीच अप्रत्यक्ष संबंध है।
  • उत्पाद निर्माण, योजना, उत्पादन अनुसूची एवं बिक्रियों पर मार्केटिंग का अधिकार होना चाहिए ।
  • आध्ुानिक दृष्टिकोण से मार्केटिंग का सिद्धांत वह है जिसके अन्तर्गत कम मूल्य पर कोई वस्तु अधिक तेजी से उपभोक्ता के पास पहुंच जानी चाहिए ।
  • मार्केटिंग एक कला है क्योंकि इसमें नियमों, सिद्धांतों, प्रमाणीकरण तथा बाजार अधिसूचना का निकाय है। विज्ञान के नियमों की तरह मार्केटिंग का सिद्धांत बिल्कुल सही नहीं हो सकता।
  • मार्केटिंग समाज के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि मानव के रहन- सहन का स्तर नियोजित करता है। साथ ही यह वितरण लागत में कमी, रोजगार अवसर में वृद्धि तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि करता है।
  • वितरण लागत में कमी उत्पाद के मूल्य को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।
  • मार्केटिंग प्रक्रिया की सफलता प्रयोग एवं बिक्री को बढ़ाना है।
  • मार्केटिंग अनुसंधान अनुकूलतम लागत को कम करता है तथा लाभ अर्जित करने में मदद करता है।
  • मार्केटिंग विलोमतः स्वीकार्य व्यावसायिक गतिविधि है जो सभी सफल व्यवसाय के लिए आवश्यक है।
  • क्या उत्पादन किया जा सकता है इससे पहले फर्म को यह निर्णय करना है कि क्या बेचा जा सकता है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था में मार्केटिंग की कुछ उपयोगिताएँ- रोजगार अवसरों में वृद्धि, देश का संतुलित विकास, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि, तथा वस्तुओं की बिक्री में वृद्धि है।
  • मार्केटिंग का मुख्य कार्य मार्केटिंग अनुसंधान, उत्पाद नियोजन, विकास, खरीद एवं वस्तुओं का संग्रह, संकुलन एवं स्तरीकरण है।
  • बाजार की स्थिति, बाजार में उपलब्ध अन्य संसाधन एवं विभिन्न प्रतियोगिताआंे के कारण बिक्री करना बहुत ही कठिन कार्य है।
  • प्रतियोगी जोखिम, मानवीय जोखिम तथा राजनीतिक जोखिम व्यवसाय में शामिल प्राकृतिक जोखिम हैं।
  • बिक्री के क्रिया- कलाप का केन्द्र विक्रेता की जरूरत है और मार्केटिंग क्रिया- कलाप का केन्द्र हमेशा उपभोक्ता की आवश्यकता है।
  • समग्रित मार्केटिंग तथा उपभोक्ता की संतुष्टि के माध्यम से लाभ, मार्केटिंग सिद्धांत में शामिल चरण हैं।

मार्केटिंग प्रबंधन के अर्थ, कार्य एवं महत्व
(Meaning, Functions and Importance of Marketing Management)

  • साधारण अर्थ में विपणन का अर्थ वस्तुओं अथवा सेवाओं के क्रय- विक्रय से लगाया जाता है परंतु वास्तव में विपणन के अंतर्गत किसी वस्तु अथवा सेवा के उत्पादन के लिए विचार की उत्पत्ति से लेकर उपभोक्ता संतुष्टि के लिए की जाने वाली समस्त क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है।
  • मार्केटिंग नियोजन, संगठन, निर्देशन, उत्प्रेरण तथा अन्य क्रिया- कलापों की प्रक्रिया है।
  • मार्केटिंग प्रबंधन विश्लेषण, नियोजन, संचालन तथा नियंत्रण का संयोग है।
  • अधिकतम लाभ अर्जित करना ही सभी व्यबसायिक गतिविधियांे का सबसे सामान्य एवं अनुकूलतम उद्देश्य है।
  • भारत में मार्केटिंग तकनीकों का अभाव है क्यांेकि यहाँ मार्केटिंग कार्यछमता, मार्केटिंग अनुसंधान एवं भारतीय उपभोक्ताओं तथा उद्योगविदों में रूझान की कमी है।
  • विज्ञापन शुल्क, पैकिंग खर्च, ट्रेडमार्क शुल्क तथा परिवहन लागत उच्च मार्केटिंग लागतों के कारण हैं।
  • मार्केटिंग प्रबंधक सभी समन्वयकों के निरीक्षण एवं दिशा- निर्देशन के लिए जिम्मेदार है।
  • स्टाफिंग प्रबंधक का मुख्य कार्य मार्केटिंग क्रिया- कलापों के लागतों का विश्लेषण करना है।
  • उत्प्रेरण के सिद्धांत के अन्तर्गत मार्केटिंग की क्रिया- विधि उत्पे्ररित होनी चाहिए।
  • उपक्रम के प्रति मार्केटिंग प्रबंधक का मुख्य उत्तरदायित्व है- बाजार अनुसंधान, बिक्री का पूर्वानुमान, उत्पाद नियोजन तथा साख नियंत्रण
  • समाज के प्रति मार्केटिंग प्रबंधक का उत्तरदायित्व है- समाज को नए उत्पाद उपलब्ध कराना तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना।

मार्केटिंग संगठन (Marketing Organisation)

  • विपणन संगठन विपणन क्रियाओं में लगे हुए व्यक्तियों का पहचान योग्य वह समूह है जो विपणन लक्ष्यों की प्रप्ति हेतु योगदान करते हैं।’’ अन्य शब्दों में ‘‘विपणन संगठन से तात्पर्य एक ऐसी प्रक्रिया से है जो विपणन कार्यों का निर्धारण, विभाजन एवं समूहीकरण करती है।’’ विपणन, व्यक्तियों को अधिक सत्ता सौंपती है और विपणन तथा प्रभावपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करती है, जिससे विपणन लक्ष्यों की प्रप्ति सम्भव होती है। संक्षेप में विपणन संगठन वह यंत्र अथवा प्रक्रिया है जो विपणन प्रबन्ध दर्शन को व्यवहार में लागू करती है तथा उत्पादों, विपणन- वाहिकाओं, भौतिक वितरण व्यवस्थाओं, संवर्धन क्रियाओं एवं कीमतों से सम्बन्धित निर्णय और क्रियान्वयन को सम्भव बनाती है।
  • मानव के विकास के कारण मार्केटिंग संगठन की जरूरत है।
  • सभी मार्केटिंग प्रयासों की शुरुआत उपभोक्ताओं की इच्छाओं तथा जरूरतों की खोज से होती है। और सभी मार्केटिंग क्रिया- कलापों का अंत व्यवसायी की संतुष्टि से होती है।
  • कम्पनी की लाभ उद्देश्य बाजार संगठन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।
  • मार्केटिंग सिद्धांत के अन्तर्गत चल रहे फर्मों ने उतार- चढ़ाव के बजाय परिवर्तन पर बल देने के पक्ष में विकल्प दिया है।
  • एक कम्पनी जो उद्योग में अधिकतम बाजार अंश के लिए प्रयास करती है, के लिए बड़े मार्केटिंग संगठन की जरूरत है तथा एक कम्पनी जो उद्योग में न्यूनतम बाजार अंश के लिए प्रयास करता है, के लिए छोटे मार्केटिंग संगठन की जरूरत है।
  • प्रतियोगी बाजार में नेतृत्व का चयन करने के लिए एक फर्म शक्तिशाली संगठन की आवश्यकता है।
  • आपूर्तिकर्ता के साथ कम्पनी का सम्बंध उत्पाद के गुण, मरम्मत एवं पुर्नस्थापन योग्य कल- पुर्जाे की उपलब्धता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।
  • मार्केटिंग विभाग का उसके मार्केटिंग कर्मचारियों के साथ लघुकालीन संबंध होते है।
  • मार्केटिंग सिद्धांत के अन्तर्गत बनी बड़ी कम्पनियों की अनौपचारिक संगठन संरचना होती है।
  • मार्केटिंग इकाई के संगठन में कार्यों को विशिष्ट क्रिया- कलापों में विभाजित करना शामिल है।

मार्केटिंग: प्रक्रिया एवं नियोजन

(Marketing Process & Marketing Planning)

  • वर्तमान में, व्यावसायिक क्रियाओं का क्षेत्र एवं पैमाना काफी व्यापक हो गया है और औद्योगिकी का विकास भी जटिलता एवं विशिष्टता ग्रहण कर चुका है। ऐसी परिस्थिति में, वे संस्थाएँ ही सफलता प्राप्त कर पाती हैं जिनके समस्त क्रियात्मक विभागों के बीच समन्वय बना रहता है। नियोजन को आज अन्तर्विभागीय समन्वय का श्रेष्ठ उपाय माना गया है। यही कारण है कि विपणन नियोजन का प्रमुख विशिष्ट उद्देश्य विपणन क्रियाओं तथा अन्य कार्यों में समन्वय स्थापित करना है।
  • वस्तुओं का एक- दूसरे के साथ लेन- देन विनिमय पद्धति कहलाता है।
  • संकेन्द्रता, अपसरण तथा समानीकरण मार्केटिंग प्रक्रिया के अंश हैं।
  • विस्तृत मात्रा में एक केन्द्रीय स्थल पर वस्तुओं के संग्रहण को संकेन्द्रता कहते हैं।
  • संक्रेन्द्रता उन उत्पादों के लिए आवश्यक है जिनका उत्पादन सालों भर लेकिन मौसम के अनुरूप होता है एवं उसका उपभोग किया जाता है।
  • अपसरण के अन्तर्गत वस्तुओं एवं सेवाओं को उनकी वास्तविक उपभोक्ता के पास पहुँचा दी जाती है। उपसरण प्रक्रिया मुख्यतः थोक विक्रेता के द्वारा संपन्न होती है।
  • अपसरण के अन्तर्गत जमा करना, संग्रह करना, ग्रेड में विभाजित करना एवं मानकीकरण इत्यादि आते हैं।
  • समानीकरण प्रक्रिया सकेन्द्रता ताथा अपसरण के मध्य समन्वय को प्रभावी रूप से स्थापित करता है।
  • बिक्री का पूर्वानुमान, मार्केटिंग कार्यक्रमों की शरुआत एवं उद्देश्यों का निर्धारण मार्केटिंग नियोजन में शामिल है। मार्केटिंग नियोजन भविष्य में होने वाली अनिश्चितताओं को कम करने में मदद करता है क्योंकि भविष्य अनिश्चित है।
  • मार्केटिंग नियोजन, मार्केटिंग प्रयासों के निर्देश एवं समन्वयन के लिए केन्द्रीय सूचक है।
  • मार्केटिंग नियोजन का केन्द्र ग्राहक अधिग्रहण एवं दोहराव है तथा इसके लिए आवश्यक संसाधनों विभिन्न प्रकार के मार्केटिंग प्रोग्रामों का उपयोग करते हुए प्रभावी बनाना है।
  • मार्केटिंग नियोजन सभी कर्मचारियांे के लिए व्यक्तिगत उद्देश्यों को स्थापित करता है और इस प्रकार यह कर्मचारियों की दक्षता को बढ़ाने में भी मदद करता है।
  • उद्देश्य निर्धारण, पूर्वानुमान, नीतियाँ एवं प्रयोगविधी मार्केटिंग नियोजन के अवयव हैं।
  • पाॅलिसी समन्वयकों के लिए दिशा- निर्देश प्रदान करता है तथा प्रबंन्धकीय कार्य हेतु सीमा निर्धारित करता है।
  • किसी नीति को लागू करने के लिए एक उपक्रम द्वारा उठाए गए कदमों के क्रम को प्रक्रिया/प्रयोग विधि कहा जाता है।
  • नियोजित कार्य को कार्यान्वित करने के लिए कार्यक्रम तैयार किया जाता है।
  • विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम हैंः लघुकालीन या दीर्घकालीन, गहन या विस्तृत तथा सामान्य या विशिष्ट कार्यक्रम।
  • उपक्रम के लाभ के लिए नीतियाँ बनाई जाती है तथा नियम योजनाओं के सामान्य रूप होते हैं।
  • एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए जो योजनाएँ बनाई जाती है उन्हें दीर्घकालीन मार्केटिंग नियोजन कहा जाता है।
  • मार्केटिंग नियोजन के प्रमुख चरण हैंः निदान एवं पूर्वानुमान, उद्देश्य, रणनीति तथा नियंत्रण।

मार्केटिंग प्रोग्राम (Marketing Programme)

  • आधुनिक समय में यह माना जाता है कि ‘उपभोक्ता शहंशाह है’ (Consumer is King)। इस विचारधारा का अर्थ यह है कि उत्पादक अथवा निर्माता को वस्तु का निर्माण करते समय इस बात की पूरी कोशिश करनी चाहिये कि उपभोक्ता को अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त हो। उपभोक्ताओं को उचित समय पर, उचित स्थान पर, उचित मूल्य पर तथा उनकी रुचि, आय, फैशन आदि को ध्यान में रखकर वस्तुएँ प्रदान की जानी चाहिये। विपणन अनुसन्धान इसी उद्देश्य की पूर्ति का एक साधन है। विपणन अनुसन्धान के विषय में आवश्यक आँकड़ों को एकत्रित करने, संकलित करने, उनको अंकित करने एवं उनका विधिवत् विश्लेषण करने से है ताकि उपभोक्ताओं को अधिकतम सन्तुष्टि प्रदान करते हुए उचित लाभों की प्राप्ति की जा सके।
  • मार्केटिंग उद्देश्य का निर्धारण किसी व्यवसाय का प्रथम पहलू है और मार्केटिंग उद्देश्यों के निर्धारण के तुरंत बाद व्यवसाय के समक्ष उठने वाली पहली समस्या है कि कैसे इन मार्केटिंग उद्देश्यों को प्राप्त किया जाय।
  • मार्केटिंग प्रोग्राम के मुख्य अवयव योजना एवं संचालन है। मार्केटिंग प्रोग्राम के नियोजन पर विचार करते समय मांग राशि, आन्तरिक राशि, मार्केटिंग मिक्स राशि तथा मार्केटिंग रणनीति इत्यादि कारकों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए ।
  • मार्केटिंग कार्यक्रम का संचालन, मार्केटिंग कार्यक्रम की तैयारी से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
  • एक स्वच्छ मार्केटिंग कार्यक्रम ऐच्छिक परिणाम उत्पन्न नहीं कर सकता, यदि इसे वैयक्तिक रूप से संचालित न किया जाए ।
  • मार्केटिंग कार्यक्रम नए उत्पाद की जानकारी देने, मांग उत्पन्न करने, नए उत्पाद की मांग बढ़ाने तथा उपलब्ध संसाधनों के अनुकूलतम प्रयोग में बहुत सहायक है।
  • पुराने उत्पादों के लिए मांग बढ़ाने एवं उस मांग को नियंत्रित करने के लिए मार्केटिंग कार्यक्रम आवश्यक है।
  • नए उत्पादों की स्थिति में संभावी उपभोक्ताओं के मध्य उत्पादों की पहचान कराने एवं प्रसिद्धि दिलाने में मार्केटिंग कार्यक्रम मदद करता है।
  • मार्केटिंग कार्यक्रम उपभोक्ताओं की नापसंद एवं आदतों में परिवर्तन का अध्ययन करने तथा बाजार विच्छेदन में मदद करता है।
  • नए उत्पाद का विकास करने के लिए स्वच्छ मार्केटिंग कार्यक्रम एक आवश्यक तत्व है।
  • स्वच्छ मार्केटिंग की सहायता से हम उपभोक्ताओं की पसंद एवं नापसंद का विश्लेषण कर सकते हैं।
  • मार्केटिंग प्रयासों को सफल बनाने के लिए एक उद्यम के मार्केटिंग संसाधनों का अधिकतम उपयोग आवश्यक है।
  • यदि एक उद्यम अपनी मार्केटिंग प्रयासों मंे सफल होना चाहता है तब उसे उत्पाद की गुणवत्ता को बनाये रखने तथा उचित मूल्यों पर उसके उत्पाद की बिक्री करना आवश्यक है।
  • उत्पादन के समय में लागत नियंत्रण, कम मूल्यों पर उत्पाद की मांग तथा बाजार के अधिकांश हिस्सों पर वस्तुओं की पकड़ बनाये रखना एक बड़े पैमाने पर उत्पाद के लाभ हैं।
  • समन्वयन, निर्देशन एवं नियंत्रण, मार्केटिंग क्रियाकलापों के विभिन्न पहलू हैं जिस पर मार्केटिंग प्रोग्राम तैयार किये जाते हैं।
  • मांग राशि पर ध्यान रखना चाहिए क्योंकि किसी भी उद्योग/उद्यम की बिक्री मांग पर निर्भर करती है
  • उपभोक्ता का स्वाभाव, उपभोक्ता की आवश्यकताएँ, उपभोक्ता की आय तथा उपभोक्ता की संख्या उपभोक्ता राशि के उदाहरण हैं।
  • प्रतियोगिता की स्थिति, प्रतियोगियों की संख्या तथा प्रतियोगियों द्वारा अपनायी गई नीतियाँ प्रतिद्वन्द्वी राशि के उदाहरण हैं।
  • मार्केटिंग निर्णय के विभिन्न अंश उत्पाद, स्थान, प्रगति तथा मूल्य हैं।
  • मार्केटिंग रणनीति उद्देश्य, नीतियों तथा नियमों का एक समुच्चय है।
  • किसी उद्योग द्वारा उत्पादित सभी उत्पादों का समूह प्रोडक्ट मिक्स कहलाता है।
  • वितरण की सबसे अधिक उपयोगी श्रृंखलाएँ उत्पादक- उपभोक्ता, उत्पादक- विक्रय तथा एजेंट- उपभोक्ता है।
  • विज्ञापनों के प्रयासों तथा बिक्रियों की प्रगति को संदेश मिक्स कहा जाता है।
  • मार्केटिंग से संबंधित कारकों में उत्पाद नियोजन, ब्रान्ड नीति, पैकिंग नीति तथा वैयक्तिक बिक्री को शामिल किया गया है।
  • मार्केटिंग निर्णय (Marketing Decision)
  • पूर्व- निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए क्रिया- विधि का चयन करना ही निर्णय लेना है।
  • निर्णय सामान्यतः नीति एवं निर्देश के रूप में अभिव्यक्त किये जाते हैं। निर्णय, निर्णय लेने वालों की समर्पण भावना को प्रतिबिम्बित करता है।
  • सभी व्यावसायिक क्रिया- कलाप उच्च स्तरीय प्रबन्ध द्वारा ली गई निर्णय के अनुसार संपन्न होता है।
  • समय, मुद्रा एवं सभी संसाधनों का व्यय होगा अगर निर्णय को लागू नहीं किया जाता है।
  • यदि निर्णय समय पर नहीं लिया जाता है तब यह उच्च, मध्य एवं निम्न स्तरीय प्रबंधन के लिए विभिन्न प्रकार की समस्याओं को उजागर करेगा।
  • निर्णय सही रूप से तभी लागू किया जा सकता है जब इनका समय पर स्पष्ट रूप से एवं खास तौर पर प्रचार- प्रसार हो।
  • मार्केटिंग संबंधी निर्णय मार्केटिंग क्रिया- कलापों के क्षेत्र, कर्मचारी की शक्ति, कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व को परिभाषित करते हैं।
  • मार्केटिंग संबंधी निर्णय बहुत ही (change this word) होते हैं क्योंकि मार्केटिंग उद्देश्य को पूरा करना तथा उपक्रम की सफलता इस पर निर्भर करती है।
  • वे सभी निर्णय जिसमें ज्यादा जोखिम होता है, उसे संकटपूर्ण निर्णय कहा जाता है। बहुत ही अधिक जोखिम पूर्ण निर्णय के उदाहरण हैं- उपक्रम की मूल्य नीति, उत्पाद के मूल्य में परिवर्तन तथा मार्केटिंग कार्यकारी की नियुक्ति।
  • नीति संबंधी निर्णय उपक्रम के मार्केटिंग नीति को निर्धारित करता है। नीति संबंधी निर्णय के उदाहरण है- वितरण के चैनल (क्रम) का चयन।
  • पारंपरिक एवं वैज्ञानिक प्रक्रियाएँ निर्णय लेने की तकनीक हैं। पारंपरिक प्रक्रिया के अन्तर्गत निर्णय लेने की तकनीक प्रतीकात्मक निदान पर निर्भर करती है।

बाजार अनुसंधान (Marketing Research)

आधुनिक व्यावसायिक जगत में सफलता प्राप्त ‘करने हेतु विपणन अनुसन्धान एक अचूक औषधि के समान है, जिसकी आवश्यकता न केवल विकसित राष्ट्र अपितु विकासशील राष्ट्रों में भी दिन- प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसका प्रमुख कारण विपणन अनुसन्धान द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली महत्वपूर्ण एवं मूल्यवान सूचनाएँ हैं जिन पर व्यावसायिक उपक्रम की सफलता निर्भर करती है। विपणन अनुसन्धान की आवश्यकता विशेष रूप से अत्यधिक होती है, जबकि

  1.  किसी नई वस्तु का बाजार में प्रवेश करना हो,
  2.  किसी वस्तु विशेष की माँग के सम्बन्ध में पर्याप्त आँकड़े उपलब्ध न हों,
  3.  ग्राहकों की रुचियों एवं फैशन में अत्यधिक परिवर्तन हो रहे हों,
  4.  वस्तु विशेष की बिक्री निरन्तर कम हो रही हो परन्तु इसके उचित कारणों का पता न लग पा रहा हो
  5.  संस्था को अपनी मूल्य नीति पर सन्देह हो रहा हो
  6.  वस्तुओं के वास्तविक उपभोक्ता वर्ग की जानकारी प्राप्त करनी हो
  7.  विज्ञापन की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना हो,
  8.  वस्तु विशेष में सुधार करने का आधार खोजना हो
  • इन दिनों मार्केटिंग सिद्धांत के पीछे मुख्य दार्शनिक कथन हैं- “consumer is king” अर्थात ग्राहक सर्वाेपरी है।
  • प्रत्येक कम्पनी सही समय पर उपभोक्ताओं को वस्तुएँ एवं सेवाएँ प्रदान करने का प्रयास करती है
  • सामान्य अर्थ में, बाजार अनुसंधान वस्तुओं एवं सेवाओं से संबंधित है।
  • बाजार अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य बाजार नीतियों को सुधारना/परिवर्तन करना है।
  • सेवाओं एवं उत्पाद की खोज मार्केटिंग अनुसंधान में शामिल सिद्धान्त हैं।
  • बाजार से संबंधित सम्पूर्ण खोज ही बाजार अनुसंधान कहलाता है।
  • बाजारों के विश्लेषण के आधार पर उत्पादों की मांग का पूर्वानुमान करना खोज है।
  • वह पहलू जिसका अध्ययन बिक्री तरीकों एवं नीतियों की खोज में किया जाता है, बिक्री सीमा का वर्गीकरण कहता है।
  • विज्ञापन अनुसंधान विज्ञापन के लिए योग्य माध्यमों का चयन करने में मदद करता है।
  • बाजार अनुसंधान मार्केटिंग के आधारभूत सिद्धान्त का उपहार है।
  • कोई भी व्यवसाय या औद्योगिक उपक्रम परिष्कृत अनुसंधान की अनुपस्थिति में अपने मार्केटिंग उद्देश्यों को पूरा नहीं कर सकता है।
  • उत्पादों का उत्पादन, उत्पादों के नए प्रयोग, मांग का ज्ञान तथा नियोजित उत्पादन, बाजार अनुसंधान की महत्ता को परिलक्षित करता है।
  • बाजार अनुसंधान, बाजार में FMCG उत्पाद को बेचने की संभावना के द्वार खोलता है।
  • औसत उत्पादन कम्पनी की उत्पादों के मांग एवं पूर्ति को समायोजित कर सकता है।
  • वितरण विश्लेषण संग्रहण की समस्या, परिवहन, विज्ञापन तथा विक्रय प्रोन्नति की व्याख्या करता है।
  • बाजार अनुसंधान बहुत जरूरी है जब नए उत्पाद की शुरुआत करनी हो।
  • आंकड़ों की सारणीकरण द्वारा तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है।

बाजार विखण्डन (Market Segmentation)

  • बाजार विखण्डन के स्तर हैं- जन समुदाय मार्केटिंग, विभाग मार्केटिंग/खण्ड मार्केटिंग तथा सूक्ष्म मार्केटिंग।
  • बाजार विखण्ड वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत बाजार को क्रेताओं को विभिन्न समूह में विभक्त कर देते हैं जिनमें से प्रत्येक विभाग का अपना अलग उत्पाद या मार्केटिंग मिक्स होता है।
  • उत्पाद स्थिति एक तरीका है जिसके अन्तर्गत उपभोक्ता द्वारा उत्पाद को परिभाषित किया जाता है।
  • बाजार विखण्डन के महत्व हैंः उपलब्ध संसाधनों का अच्छी तरह उपयोग करना, बाजार में अवसरों की पहचान करना/खोजना, मार्केटिंग क्रिया- कलापों का मूल्यांकन करना।
  • एक प्रभावी बाजार विखण्डन के लिए आवश्यक कारक हैं- मापन, आसान तरीकों से पहुँच तथा स्थिरता।
  • सामाजिक- आर्थिक कारकों के अन्तर्गत पेशेवरों को वकील, डाॅक्टर, चार्टड एकाउन्टेंट तथा निर्देशक के रूप में उप- समूहों में विभाजित किया गया है।
  • भौगोलिक कारकों के अन्तर्गत स्थानों को शहर एवं गांव, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय, घाटी एवं समतलीय प्रदेश, गर्म एवं ठंडे प्रदेशों में बाँटा गया है।
  • उपभोक्ता व्यवहार के अंतर्गत उपभोक्ताओं को गैर उपयोगकर्ता, माध्यमिक उपयोगकर्ता तथा वृहत उपयोगकर्ता के रूप में बांटा गया है।
  • औद्योगिक उत्पादों को विखण्डित करने के आधार हैं- व्यवसाय के प्रकार, क्रेताओं के आकार, क्रेता की भौगोलिक स्थिति तथा क्रेता की खरीद- प्रक्रिया।
  • उपभोक्ता निहित रणनीति अधिक मात्रा में ग्राहकों को आकर्षित करता है तथा उपक्रम की बिक्री को बढ़ाना ही विभिन्नतावादी मार्केटिंग रणनीति के लाभ हैं।

उपभोक्ता/क्रेता व्यवहार तथा उत्प्रेरण (Consumer/Buyer Behaviour & Motivation)

  • मार्केटिंग तथा उपभोक्ता प्रदर्शन के मध्य संबंध पर अनुसंधान को उपभोक्ता व्यवहार के रूप में जाना जाता है।
  • किसी निश्चित भौतिक बलों, सामाजिक बंधनों तथा आर्थिक शक्तियों के परिणामस्वरूप ग्राहक उत्पाद खरीदता है।
  • भोजन, वस्त्र, आवास तथा सामाजिक द्वितीयक क्रय उद्देश्यों के उदाहरण हैं। मोल- भाव करना तथा स्वाभिमान द्वितीयक क्रय उद्देश्यों के उदाहरण हैं।
  • एक व्यवसायी को अपने उत्पाद का मूल्य निर्धारित करने से पहले उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन करना चाहिए क्योंकि उपभोक्ता काफी हद तक मूल्य नीति को प्रभावित कर सकता है।
  • बिक्रय प्रोन्नति के अन्तर्गत शीर्ष रूप, रंग, पैकिंग तथा स्तरीकरण उपभोक्ता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।
  • यदि उत्पाद का पैक बहुत आकर्षक होगा, तब कुछ नए ग्राहक इस कारण से भी उत्पाद को खरीद सकते हैं।
  • किसी खास उत्पाद के बारे में उपभोक्ता की सोच, छवि कहलाता है।
  • एक उत्पाद का लगातार विज्ञापन दोहराव क्रिया- कलाप कहलाता है।
  • एक उपभोक्ता बाजार के अन्तर्गत सभी व्यक्तिगत एवं घरेलू सामग्री शामिल हैं जो व्यक्तिगत उपभोग के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदता है या ग्रहण करता है।
  • किसी व्यक्ति की भूमिका एवं पहचान सरकारी कर की दर को प्रभावित नहीं करता है।
  • अपने शुभ चिंतकों का कल्याण ही प्राथमिक क्रय उद्देश्य है।
  • अगंभीर अवस्था में उपभोक्ता उस स्थिति में नहीं रह जाता कि वह व्याख्या कर सके जिसके कारण वह उत्पाद खरीदता है।
  • उपभोक्ता व्यवहार से संबंधित सिद्धान्त है- जन्मसिद्ध एवं विद्वतावादी क्रय उद्देश्य, भावनात्मक क्रय उद्देश्य तथा मानवीय/तर्कसंगत क्रय उद्देश्य।

उत्पाद (Product)

  • कोई वस्तु जो आवश्यकता एवं इच्छा को पूरा करती है तथा जिसे बाजार में भौतिक साधन, सेवाएँ, व्यक्ति, स्थान, संगठन के विचार इत्यादि सहित उपयोग या उपभोग, ध्यान एवं अधिग्रहण के लिए उपलब्ध कराया जा सकता है, उसे उत्पाद कहा जाता है।
  • उत्पाद के तीन स्तर है- इनको कोर उत्पाद, वास्तविक उत्पाद तथा संवर्द्धित उत्पाद कहा जाता है।
  • उत्पाद बनाने वाले या विक्रेता की पहचान कराता है जिसके अन्तर्गत नाम, पद, चिन्ह, प्रतीक एवं आकृति आते हैं।
  • ब्रांड निर्णय में ब्रान्ड के नाम का चयन, ब्रांड के प्रायोजक तथा रणनीति शामिल हैं।
  • मार्केटिंग के दो प्रमुख राशि- उपभोक्ता एवं उत्पाद है। उत्पाद सभी मार्केटिंग गतिविधियों का केन्द्र है।
  • यदि मार्केटिंग का पहला अधिकार उपभोक्ता के रूप में जाना जाता है, तो दूसरा उत्पाद के रूप में। सभी मार्केटिंग प्रयासों का आरंभ एवं अन्त उत्पाद के साथ होता है।
  • उत्पादों एवं वस्तुओं का मुख्य वर्गीकरण निम्न प्रकार हैः उपभोक्ता उत्पाद, औद्योगिक उत्पाद तथा रक्षा उत्पाद।
  • उत्पाद जो उपभोक्ता द्वारा प्रत्यक्ष उपभोग के लिए बनाये जाते हैं, उपभोक्ता उत्पाद कहलाता है।
  • वस्तुएँ जो उपभोक्ताओं द्वारा अक्सर खरीदी जाती हैं, सुविधाजनक वस्तुएँ कहलाती हैं।
  • सुविधाजनक वस्तुएँ जो ग्राहकों द्वारा केवल उनके गुण, मूल्य एवं अन्य वस्तुओं से तुलना करने के पश्चात खरीदी जाती है, खरीदने योग्य वस्तुएँ कहलाती हैं।
  • उत्पाद जिनका उपयोग दूसरी वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन में किया जाता है, औद्योगिक उत्पाद कहलाता है।
  • औद्योगिक उत्पादों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया गया हैः उत्पादन सामग्री, उत्पादन आपूर्ति, उत्पादन सुविधाएँ एवं प्रबंधक सामग्री।
  • औद्योगिक उत्पाद के अन्तर्गत उत्पादन सामग्री के उपवर्ग में शामिल है- कच्चा पदार्थ, अर्द्ध तैयार वस्तुएँ तथा निर्माण योग्य वस्तुएँ।
  • वस्तुएँ जो एक औद्योगिक इकाई द्वारा निर्मित किए जाते हैं तथा दूसरे औद्योगिक इकाई द्वारा बिना किसी प्रक्रिया के उपयोग किए जाते हैं, उसे निर्माणकारी वस्तुएँ कहते हैं।
  • निर्माणकारी वस्तुओं के उदाहरण है- T.V. का स्पीकर टायर तथा ट्यूब, इत्यादि।
  • वस्तुएँ जो औद्योगिक इकाई को चलाने के लिए आवश्यक हैं उसे उत्पाद आपूर्ति कहा जाता है।
  • उत्पादन आपूर्ति के उदाहरण हैं- कोयला, गैस, सफाई सामग्री इत्यादि।
  • उत्पादन सुविधाओं के उदाहरण हैं- प्लांट ;इकाईद्ध, मशीन, मकान और फर्नीचर।
  • उपभोक्ता सामग्री एव औद्योगिक सामग्री के मध्य अन्तर के आधार हैं- ग्राहकों की संख्या, मांग का स्वभाव तथा उत्पाद विश्लेषण।

उत्पाद नियोजन तथा विकास (Product Planning & Development)

  • नए उत्पादों के बारे में सोच- विचार का सृजन वितरक आपूर्तिकर्ता , ग्राहक तथा प्रतियोगी के माध्यम से हो सकता है।
  • मानक जाँच बाजारों की विशेषता यह होती है कि वह काम को पूरा करने में लम्बा समय लेते हैं तथा अधिक महँगे होते है।
  • नियंत्रित जाँच बाजार प्रायः मानक जाँच बाजार की अपेक्षा कम लागत वाली एवं कम समय में कार्य पूरा करने करने वाली होती है।
  • भविष्य में क्या करना है इसके बारे में निर्णय करना ही नियोजन है।
  • किसी खास उत्पाद के बारे में निर्णय करना जिसे उपक्रम द्वारा उत्पादित/वितरित किया जाएगा, उत्पाद नियोजन कहलाता है।
  • उत्पादन के पहले अनुसंधान करने से उत्पाद के गुण, उत्पाद का आकार, उत्पाद की बनावट एवं उत्पाद के रंग के बारे में निर्णय करने में मदद करता है।
  • उत्पाद नियोजन एक गतिविधि नहीं है। यह एक प्रक्रिया है।
  • मानकीकरण का सिद्धान्त इस तथ्य पर बल देता है कि उत्पाद के लिए पूर्व- निर्धारित मानक होनी चाहिए।
  • सरलीकरण का सिद्धान्त जोर देता है कि उत्पादन प्रक्रिया जितना संभव हो सके उतना ही सामान्य होना चाहिए।
  • उत्पाद विकास के मुख्य लाभ हैं- उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद, बाजार प्रसार, ग्राहकों को अधिकतम संतुष्टि तथा लाभ में वृद्धि।
  • उत्पाद निर्णय, उत्पाद के आकार एवं बनावट, उत्पाद का नाम एवं मूल्य इत्यादि उत्पाद नियोजन एवं विकास के क्षेत्र में शामिल है।
  • किसी निश्चित अवधि के लिए उत्पाद की मरम्मत हेतु विक्रेता/उपक्रम द्वारा दी जाने वाली गारंटी, गारंटी के सिद्धांत तथा बिक्री के बाद सेवा को दर्शाता है।
  • यदि कोई उपक्रम बदलते हुए परिवेश के अनुसार अपने उत्पाद में परिवर्तन नहीं करता है तब वह मार्केटिंग उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकते।
  • जब बाह्य उत्पाद में थोड़ा परिवर्तन करके उसे बाजार में उतारा जाता है तो इस प्रक्रिया को उत्पाद अन्वेषण/नवनिर्माण कहते हैं। उत्पाद नवनिर्माण विकसित देशों में सबसे ज्यादा है।

मूल्य निर्धारण (Pricing Decisions)

  • मूल्य को उपभोक्ता उत्पाद, औद्योगिक उत्पाद तथा सेवा की विनियम मान के रूप में निर्धारित कर सकते हैं।
  • किसी फर्म का उद्देश्य राष्ट्रीय बाजार में मुख्य आपूर्तिकर्ता होने का हो सकता है। इस उद्देश्य को प्राथमिक उद्देश्य के रूप में निर्धारित किया जा सकता है।
  • जब कोई फर्म सभी राज्यों में अपना स्थान बनाना चाहता है तथा अधिकतम बिक्री करने की सोच रखता है तो इसे मार्केटिंग उद्देश्य के रूप में निर्धारित किया जा सकता है।
  • लाभ उद्देश्य में लक्ष्य प्राप्ति तथा लाभ अधिकतम उद्देश्य शामिल है।
  • यदि मजदूरी उच्च होगी तब फर्म को मजदूरी बचाने वाली मशीनरी लेनी होगी।
  • फर्म की प्रतियोगी शक्ति पर मूल्य का गहरा प्रभाव पड़ता है।
  • मूल्य को ऊपर बढ़ाने के लिए उत्तरदायी कारक हैं- निम्न पूर्ति, मजदूरी में वृद्धि, कमजोर प्रतियोगिता आदि।
  • आंतरिक कारक जो उपक्रम के मूल्य निर्णय को प्रभावित कर सकता है, कम्पनी का उद्देश्य, कम्पनी की ब्रांड छवि, स्वभाव तथा मार्केटिंग चैनल।
  • एक विशिष्ट उत्पाद को अधिक मूल्य पर बेचा जा सकता है।
  • विच्छेदन मूल्य रणनीति के अन्तर्गत उत्पादक अपने उत्पाद के लिए कम मूल्य निर्धारित करती है। विच्छेदन मूल्य रणनीति का मुख्य उद्देश्य है- प्रतियोगी के बाजार में प्रवेश करने से पहले बाजार अंश पर अपनी पकड़ मजबूत करना।
  • पाॅलिसी के अन्तर्गत उत्पादक ग्राहकों को लागत से कम मूल्य पर खास उत्पाद आॅफर ;प्रदानद्ध करता है।
  • पाॅलिसी के अन्तर्गत एक फर्म ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए कुछ वस्तुओं पर स्थायी रूप से मूल्यों में कटौती कर देते हैं।
  • यह खुदरा व्यापार में सामान्य तौर पर पाया जाता है।
  • उत्पाद की बिक्री पर एक विशिष्ट प्रतिफल मिलने पर जोर देता है।
  • विभिन्न ग्राहकों से अलग- अलग मूल्य लेने की प्रथा, मूल्य विभेदाधिकार कहलाता है।
  • बाजार की अपूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार प्रतियोगिता के अन्तर्गत मूल्य विभेदाधिकार संभव है।
  • व्यक्तिगत मूल्य विभेदाधिकार प्रक्रिया में कुछ ग्राहकों से व्यक्तिगत संबंध होने के कारण कम मूल्य निर्धारित किया जाता है।

वितरण के चैनल और भौतिक वितरण (Channels of Distribution and Physical Distribution)

  • वितरण के विभिन्न चैनलों द्वारा निष्पादित मुख्य कार्य, मांग, मूल्य निर्धारित, पूर्वानुमान कीमतों और प्रचार गतिविधियों को स्थिर करने में मदद करना है।
  • बिचैलियों द्वारा क्रय माल की कीमतें स्थिर रखने में और बाजार में निरंतर आपूर्ति करने में मदद मिलती है
  • खरीदार और निर्माता के बीच लिंक बना कर बिचौलिये संचार में सहायक के रूप में काम करते हैं।
  • व्यापारिक एजंेट के तहत उप प्रभाग- कमीशन एजेंट, कारक, नीलामकर्ता और दलाल हैं।
  • किसी अन्य व्यक्ति की ओर से एक कमीशन एजेंट के रूप में कार्यरत व्यक्ति मुख्यकर्ता के रूप में जाना जाता है।
  • दलाल एक व्यापारिक एजेंट है जो अन्य दलों की ओर से खरीद या वस्तुओं की बिक्री की बातचीत करता है।
  • एक व्यक्ति जो माल खरीदकर लाभ के मार्जिन के लिए अपने ही नाम से बेचते हैं उसे बिचौलिये कहा जाता है। बिचौलिये की श्रेणियां हैं, थोक व्यापारी और खुदरा व्यापारी।
  • शुद्ध थोक व्यापारी, थोक व्यापारी और खुदरा थोक व्यापारी- थोक विक्रेताओं के प्रकार हैं।
  • सभी व्यापारी और बिचौलिये जो बड़ी मात्रा में खरीद और बिक्री करते हैं थोक व्यापारी कहलाते हैं।
  • जिस व्यापार में थोक व्यापारी भारी मात्रा में माल खरीदते हैं तथा कम मात्रा में बेचते हैं उसे जोखिम भरा भण्डारण कहा जाता है।
  • वे सभी गतिविधियाँ जो अंतिम उपभोक्ता के साथ वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित है, उसे खुदरा बिक्रेता कहा जाता है।
  • खुदरा बिक्रेता का अंतिम उपभोक्ता के साथ सीधा संपर्क रहता है। ग्राहक के एक एजेंट के रूप में कार्य करता है।
  • खुदरा बिक्रेता द्वारा उपभोक्ताओं के लिए प्रदान की जानेवाली सेवाएँ हैं- चयन, मांग, सृजन माल की विविधता, वितरण।
  • अनुमोदन सेवाओं पर बिक्री उपभोक्ता को एक विकल्प प्रदान करता है कि ‘‘यदि माल उनकी इच्छा पसंद की नहीं है तो वह उसे एक विशिष्ट समय सीमा के भीतर वापस कर सकते हैं।’’
  • भौतिक वितरण के मुख्य उद्देश्य हैं- मांग एवं पूर्ति में संतुलन बनाये रखना, उत्पादों के वितरण को सही तरीके से व्यवस्थित करना, वितरण की लागत कम करना तथा उपभोक्ताओं को अधिकतम संतुष्टि प्रदान करना।
  • भौतिक वितरण के प्रबंधन में निर्णायक क्षेत्र हैं- सूची के आकार, भंडारण, परिवहन तथा आदेश के आकार।
  • यदि आदेश के आकार पैकेजिंग की लागत से भी बड़ी है, तब वह परिवहन लागत न्यूनतम करने के लिए कम हो जाएगा।
  • कुल वितरण चैनलों को पारिश्रमिक के रूप में भुगतान की गई राशि वितरण लागत कहलाता है।
  • हो रही बिक्री के लिए खर्च, पालन आदेश पर खर्च, व्यय खर्च, बिक्री को बनाए रखने के लिए खच- वितरण लागत का मुख्य घटक है।
  • विज्ञापन खर्च, बिक्री संवर्धन व्यय और व्यक्तिगत बिक्री हो रही के लिए खर्च में शामिल किया जाता है।

थोक एवं खुदरा व्यापार (Wholesale and Retail Trade)

  • थोक विक्रेता मांग एवं पूर्ति के मध्य खास संतुलन बनाता है।
  • वितरण चैनल का नाम जो उत्पादक द्वारा प्रत्यन रूप से चलाया जाता है, विभागीय स्टोर कहलाता है।
  • सुपर बाजार के लिए ज्यादा एवं प्रभावी विज्ञापन के मदद की जरूरत होती है।
  • एकत्रित मोल भाव सहकारी समाज की मुख्य विशेषता है।
  • वे सभी गतिविधियाँ जिसके अन्तर्गत वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक उपयोग के लिए अंतिम उपभोक्ता के साथ प्रत्यक्ष रूप से की जाती है, उसे खुदरा व्यापार के रूप में जाना जाता है।
  • स्वतंत्र रूप से कार्य करने वाले विक्रेता जो थोक विक्रेता द्वारा अधिक मात्रा में सामान खरीदने तथा सामान्य व्यापार के कार्य में जुटे होते हैं, प्रायोजित किये जाते हैं उसे श्रृंखलाबद्ध दुकान कहा जाता है।
  • पारंपरिक/सामान्य स्टोरों को प्रिंट सूचीपत्रों तथा प्रिंट कार्टून प्रदर्शनों से बढ़ रही प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है।
  • सेल्समैन के द्वारा बेची जाने वाली वस्तुएँ डिपार्टमेंटल स्टोर की बिक्री तकनीक है।
  • डिपार्टमेंटल स्टोर में नगद एवं उधार दोनों प्रकार की बिक्री तकनीक है।
  • डिपार्टमेंटल स्टोर तथा multiple shops में अन्तर के आधार हैं- उत्पाद की प्रकृति, उत्पाद का मूल्य तथा साख (credit) सुविधाएँ।
  • दुकानों में जहाँ एक ही निर्माता के उत्पाद/सामान की बिक्री की जाती है उसे व्यापार में थोक व्यापार कहा जाता है।
  • थोक व्यापार में व्यवसाय के क्षेत्र विस्तृत तथा खुदरा व्यार में संकीर्ण होते हैं।
  • थोक विक्रेता से भिन्न खुदरा विक्रेता की सेवाएँं- वित्तीय सहायता, संपर्कता, मूल्यों में स्थिरता तथा विशिष्टता।

विज्ञापन (Advertisement)

  • एक डिपार्टमेंटल स्टोर के लिए सबसे उपयुक्त विज्ञापन मीडिया राष्ट्रीय समाचार पत्र है।
  • जब विज्ञापन को एक समाचार पत्र में श्रृंखला में एक नियमित अंतराल पर प्रकाशित किया है, उसे नमूना विज्ञान विज्ञापन कहा जाता है।
  • बिक्री संवर्धन के तरीके हैं- उपभोक्ताओं के लिए मुफ्रत उपहार, डिस्काउंट कूपन, कीमत में कमी और प्रीमियम उत्पाद।
  • एक विशेष विक्रेता को सौंपा गया एक विशिष्ट बिक्री लक्ष्य बिक्री कोटा के रूप में वर्णित हैं।
  • वह प्रक्रिया जिसका उपयोग फर्म द्वारा नई संपत्ति को खरीदने में किया जाता है, जब उनके पास पर्याप्त मात्रा में धन नहीं होता, उसे किश्त भुगतान विधि कहा जाता है।
  • ‘‘उपभोक्ताओं की दुनियाँ मंे नए माल और सेवाओं से परिचय कराना’’ विज्ञापन का मुख्य उद्देश्य है।
  • निर्माताओं को विज्ञापन के लाभ हैं- स्थिरता, बिक्री में वृद्धि, लाभ में वृद्धि तथा व्यवसाय की प्रसिद्धि।
  • उपभोक्ताओं को विज्ञापन के लाभ हैं- नए उत्पाद का ज्ञान, सुविधाजनक खरीद और समय की बचत।
  • समाज के लिए विज्ञापन के लाभ हैं- रोजगार के अवसर, जीवन स्तर मंे वृद्धि, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और शिक्षाप्रद समाज के लिए प्रोत्साहन।
  • विज्ञापन जीवन स्तर में वृद्धि करके समाज को वस्तुओं तथा नए उत्पादों का ज्ञान प्रदान करता है।
  • समाचार पत्र बहुत सस्ती दरों पर बेचा जाता है क्योंकि इसमें विज्ञापन शामिल होता है।
  • विज्ञापन की सहायता से उपभोक्ता अग्रिम में खरीद निर्णय कर लेते है। इस तरह विज्ञापन सुविधाजनक खरीद में मदद करता है।
  • पत्रिकाएँ विज्ञापन की लंबे समय तब स्थायी प्रभाव के लिए उपर्युक्त होता है।
  • प्रेस विज्ञापन के प्रकार हैं- समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, जर्नल और निर्देशिका
  • विज्ञापन जो मनोरंजन विज्ञापन की श्रेणी मंे आता है, सिनेमा, रेडियो, प्रदर्शनियाँ और टीवी है।
  • व्यक्तिगत पत्र उपभोक्ता और व्यवसायी के बीच के एक प्रकार का व्यक्तिगत संबंध स्थापित करता है।
  • काउंटर और विंडो प्रदर्शन सामान्य रूप से सिनेमा हाॅल, बस स्टेशनों, रेलवे स्टेशनों और प्रदर्शनियों में देखा जाता है।
  • समाचार पत्रों में संक्षिप्त विज्ञापन वर्गीकृत कहलाता है।

बिक्री संवर्द्धन एवं निजी बिक्री (Sales Promotion and Personal Selling)

  • बिक्री संवर्द्धन के मुख्य उद्देश्य हैं- उपभोक्ताओं को उत्पाद खरीदने के लिए मनाना और प्रोत्साहित करना
  • बिक्री संवर्धन के अन्य उद्देश्य हैं- नए उत्पाद शुरू करना, नए ग्राहकों को आकर्षित करना और प्रतिस्पर्धा का सामना करना।
  • बिचैलियों के लिए बिक्री संवर्द्धन के लाभ हैं- उत्पाद को बेचने में मदद करना और प्रतिष्ठा में वृद्धि करना।
  • उपभोक्ताओं को बिक्री संवर्धन के लाभ हैं- शिक्षा का स्रोत, रहन- सहन के स्तर में सुधार तथा उत्पादों के बारे में जानकारी देना।
  • एक प्रमाण- पत्र जो एक उपभोक्ता को किसी खास उत्पादों/वस्तुओं की अगली खरीद पर होने वाली छूट प्रदान करता है, उसे छूट परिपत्र कहा जाता है।
  • सस्ती सौदा विधि के अन्तर्गत उत्पादक/निर्माता घोषणा करता है कि एक खास उत्पाद/वस्तु की खरीद पर दूसरी वस्तु बहुत ही सस्ते दर पर दी जाएगी।
  • ‘बिक्री के बाद सेवा’ खरीद करने की तारीख से एक सीमित अवधि तक उत्पाद को उचित स्थिति में बनाए रखने की गारंटी देता है।
  • डीलर संवर्धन विधि के अन्तर्गत निर्माताओं द्वारा डीलरों को मूल्यों में विशेष छूट दी जाती है।
  • अतिरिक्त आय बिक्रेता को दी जाती है यदि वह पूर्व निर्धारित बिक्री लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है।
  • बैठकों एवं सेमिनारों में बिचैलियों के संदेह एवं भ्रम को सुधारा जा सकता है।
  • अवधारणा जिसमें बिक्रेताओं और खरीददारों एक दूसरे के साथ सीधे संपर्क में आते हैं, उसे व्यक्तिगत बिक्री कहा जाता है। व्यक्तिगत बिक्री, बिक्री बढ़ाने का सबसे प्रभावी पुराना तरीका है।
  • बिक्री की लागत में वृद्धि करना व्यक्तिगत बिक्री की सीमा है। सही समय पर रिपोर्टिंग करने में कठिनाई- व्यक्तिगत बिक्री का दोष है।

बिक्री प्रबंधन (Sales Management)

  • नियोजन, संगठन, हस्तांतरण, अनुमार्गन तथा अन्य बिक्री प्रबंधन में शामिल हैं।
  • विज्ञापन रणनीति बिक्री प्रबंधन का एक हिस्सा है।
  • व्यवसाय को सुचारू तौर पर चलाने के लिए एक अच्छे एवं दक्ष बिक्री प्रबंधन की आवश्यकता है।
  • उपक्रम की बिक्री नीतियों को निर्धारित करना प्रशासनिक कार्य है।
  • बिक्री प्रबन्धन का एक सामान्य उद्देश्य है- वितरण के उपर्युक्त चैनल का चयन करना।
  • बिक्री प्रबन्धन का एक प्रशासनिक कार्य है- बिक्री संगठन के सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के अधिकारों एवं कर्तव्यों को निर्दिष्ट (बताना) तथा निर्धारित करना।
  • ‘‘विभिन्न बिक्री सीमाओं के लिए बिक्री लक्ष्य निर्धारित करना’’ एक प्रभावपूर्ण कार्य है।
  • बिक्रेता को अधिक से अधिक उत्पादों को बेचने के लिए प्रोत्साहित करना एक प्रभावपूर्ण कार्य है।
  • विक्रेता के चयन का अर्थ है- बिक्री संगठन के उद्देश्यों का चयन करना।
  • विक्रेता के चयन के लिए निर्धारित योग्यताएँ- शिक्षा, प्रशिक्षित एवं अनुभवी व्यक्ति का होना है।
  • एक उपक्रम/उद्यम को बिक्री के लिए विक्रेता की आवश्यकता होती है। जिसमें सुदृढ़ आत्मविश्वास होना चाहिए।

बाजार वित्त (Marketing Finance)

  • बाजार के क्रिया- कलापों के लिए आवश्यक वित्त को बाजार वित्त कहा जाता है।
  • मार्केटिंग वित्त की आवश्यकता परिवहन, विज्ञापन, स्टाॅक तथा मालगोदाम के लिए होती है।
  • समय के आधार पर मार्केटिंग वित्त को लघुकालीन एवं दीर्घकालीन वित्त में बांटा गया है।
  • लघुकालीन वित्त के स्रोत लघुकालीन पूंजी तथा साख सुविधाएं हैं।
  • पूंजी जिसकी आवश्यकता कम अवधि के लिए होती है, उसे लघुकालीन पूंजी कहते हैं।
  • व्यवसाय के मालिक द्वारा प्रयुक्त दीर्घकालीन वित्त के स्रोत हैं- समान मूल्य वाला शेयर, अधिमानी शेयर तथा प्रमाण-पत्र।
  • लघुकालीन पूंजी को वर्तमान संपत्ति तथा वर्तमान उत्तरदायित्व के योग के रूप में निर्धारित किया जा सकता है।
  • एक व्यवसायी द्वारा दूसरे व्यवसायी लिए आदेशित साख को व्यापार साख कहते हैं। व्यापार साख को ‘B 2 B credit’ भी कहते हैं।
  • खुदरा विक्रेता द्वारा उपभोक्ता को प्रेषित साख, उपभोक्ता साख कहलाता है।
  • सहकारी बैंक, राज्य सहकारी बैंक, भूमि विकास बैंक तथा वाणिज्यिक बैंक लघुकालीन वित्त प्रदान करने में शामिल बैंक हैं।
  • वित्तीय संस्था को व्यापार संगठन द्वारा बिक्री योग्य रकम जो लोगों से प्राप्त करना है खाता क्रय कहलाता हैै।
  • शेयर बाजार, सट्टेबाजी बाजार तथा स्टाॅक बाजार इत्यादि स्टाॅक एक्सचेंज के अन्य नाम हैं।

भारत के कृषि उत्पादों का बाजार (Marketing of Agricultural Products of India)

  • भारत में मार्केटिंग की खास पद्धति न होने के कारण कृषि संबंधी मार्केटिंग का अभाव है।
  • कृषि संबंधी मार्केटिंग की प्रथम एवं द्वितीय पद्धति के अन्तर्गत किसान अपनी अतिरिक्त उत्पादन दुकानदार एवं मुद्रा धारक को बेच देता है।
  • कृषि संबंधी मार्केटिंग की तीसरी पद्धति के अन्तर्गत किसान अपने उत्पाद मंडी में तथा थोक विक्रेता को बेच देता है।
  • कृषि संबंधी मार्केटिंग की चौथी पद्धति के अन्तर्गत किसान अपना उत्पाद सरकार द्वारा खोली गई क्रेता केन्द्रों पर बेच देते हैं।
  • किसान अपनी उत्पादन को मंडी में मुद्रा धारक को, क्रेता केन्द्र पर तथा साप्ताहिक बाजार में बेच सकता है।
  • भारत में कृषि संबंधी मार्केटिंग के प्रमुख दोष हैं- कम मात्रा में उत्पाद की बिक्री, परिवहन की उच्च लागत, निम्न कोटि तथा गरीबी।
  • जोत का लघु आकार, भारतीय कृषि की निम्न उत्पादकता, पारंपरिक तरीकों का प्रयोग, इत्यादि उत्पादों को कम मात्रा में बेचे जाने के कारण हैं।
  • किसान परिवहन की उच्च लागत की वजह से मंडी में जाना नहीं चाहता है।
  • निम्न श्रेणी के बीजों, निम्न कोटि के खाद तथा निम्न उत्पादन तकनीक के कारण भारत में कृषि उत्पाद निम्न गुणवता वाले होते हैं।
  • संग्रहण तथा उचित रूप से संग्रह करने की तकनीक का अभाव होने के कारण किसान लम्बी अवधि तक उत्पाद को संग्रह करके रखने में असमर्थ हैं।

बैंकिंग तथा बीमा मार्केटिंग (Banking and Insurance Marketing)

बैंकिंग मार्केटिंग

  • भारत में सबसे पुराना वित्तीय संस्थान वाणिज्यिक बैंक हैं।
  • राज्य सहकारी बैंक राज्य में शिखर संस्था है। केन्द्रीय सहकारी बैंक का दूसरा नाम है।
  • वाणिज्यिक बैंक की रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया तक पहँुच है।
  • सभी अनुसूचित बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंक से पुर्नवित सुविधा प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त है।
  • 1969 तक वाणिज्यिक बैंक सिर्फ शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित थे।
  • सहकारी बैंक आधारतः ग्रामीण निर्मित बैंक हैं। रिजर्व बैंक का वाणिज्यिक बैंकों पर पूर्ण नियंत्रण है। इसका सहकारी बैंकों पर आंशिक नियंत्रण है।
  • अच्छी व्यवसाय तथा लाभ वाणिज्यिक बैंकों की खुली नीति है। भारत में ग्रामीण बैंकों पर लागू एक्ट- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक एक्ट, 1976 है।
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की अधिकृत पूंजी 1983 में Rs 1 करोड़ थी।
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की आरंभिक पूंजी में केन्द्र सरकार का हिस्सा 50 प्रतिशत था।
  • भूमि विकास बैंक द्वारा कृषि क्षेत्र की दीर्घकालीन साख आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है।
  • भूमि विकास बैंक किसान की जरूरतों को पूरा करता है। बैंक की वित्तीय सहायता पम्प सेट, ट्रैक्टर, मशीनरी तथा भूमि सुधार हेतु ली जाती है।
  • कृषि वित्त निगम लिमिटेड ग्रामीण विकास संपर्कता संगठन के रूप में कार्य कर रहा है।
  • IDBI दीर्घकालीन औद्योगिक वित्त के क्षेत्र में श्रेष्ठ वित्तीय संस्थान है।

बीमा मार्केटिंग (Insurance Marketing)

  • IRDA का अर्थ है बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण
  • बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण एक्ट की शुरूआत 1999 में की गई थी।
  • RGLGI बीमा योजना केवल ग्रामीण क्षेत्रों के लिए प्रदान की गई थी। PALGI भूमिहीन कृषक मजदूर के लिए प्रसिद्ध योजना है।
  • कृषि श्रमिक सामाजिक सुरक्षा योजना की शुरूआत 2001 में की गई थी।
  • सेवा क्षेत्र के अन्तर्गत होटलों, वित्त, स्वास्थ्य तथा क्रेडिट कार्ड को शामिल किया गया है।
  • बीमा क्षेत्र के अन्तर्गत बीमा नीति बेची जाती है। इस क्षेत्र के उत्पाद को नीति तथा स्कीम कहा जाता है।
  • बीमा नीतियों को बैंक, एजेंट (धारक), प्रत्यक्ष बिक्रीय तथा खुदरा विक्रेता के माध्यम से बेचा जाता है।
  • एजेंट, ग्राहक एवं बीमा धारक के मध्य बिचैलिया का कार्य करता है।
  • ग्राहक को पालिसी बेचने के पश्चात एजेंट को बीमाधारक के सम्पर्क में रहना चाहिए ताकि पालिसी आगे भी चलती रहे।