कौन थे अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ?

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ़ शाहजहाँपुर में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था।

Ashfaqulla khan

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में योगदान

महात्मा गांधी का प्रभाव अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के जीवन पर प्रारम्भ से ही था, लेकिन जब ‘चौरी चौरा घटना’ के बाद गांधीजी ने ‘असहयोग आंदोलन’ वापस ले लिया तो उनके मन को अत्यंत पीड़ा पहुँची।
रामप्रसाद बिस्मिल और चन्द्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में 8 अगस्त, 1925 को शाहजहाँपुर में क्रांतिकारियों की एक अहम बैठक हुई, जिसमें हथियारों के लिए ट्रेन में ले जाए जाने वाले सरकारी ख़ज़ाने को लूटने की योजना बनाई गई। क्रांतिकारी जिस धन को लूटना चाहते थे, दरअसल वह धन अंग्रेज़ों ने भारतीयों से ही हड़पा था।

काकोरी कांड

9 अगस्त, 1925 को अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, रामप्रसाद बिस्मिल, चन्द्रशेखर आज़ाद, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह, सचिन्द्र बख्शी, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुन्द लाल और मन्मथ लाल गुप्त ने अपनी योजना को अंजाम देते हुए लखनऊ के नजदीक ‘काकोरी’ में ट्रेन द्वारा ले जाए जा रहे सरकारी ख़ज़ाने को लूट लिया।
भारतीय इतिहास में यह घटना “काकोरी कांड” के नाम से जानी जाती है। इस घटना को आज़ादी के इन मतवालों ने अपने नाम बदलकर अंजाम दिया था। अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ ने अपना नाम ‘कुमारजी’ रखा। इस घटना के बाद ब्रिटिश हुकूमत पागल हो उठी और उसने बहुत से निर्दोषों को पकड़कर जेलों में ठूँस दिया।
कुछ समय बाद अशफ़ाक भई गिरफ्तार हो गए। 19 दिसम्बर, 1927 को अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ को फैजाबाद जेल में फांसी दे दी गई।
इस तरह भारत का यह महान सपूत देश के लिए अपना बलिदान दे गया। उनकी इस शहादत ने देश की आज़ादी की लड़ाई में हिन्दू-मुस्लिम एकता को और भी अधिक मजबूत कर दिया। आज भी उनका दिया गया बलिदान देशवासियों को एकता के सूत्र में पिरोने का काम करता है।