वीर सावरकर का भारतीय स्वतंत्रता में योगदान

वीर सावरकर न सिर्फ़ एक क्रांतिकारी थे बल्कि एक भाषाविद, कवि, राजनेता, समाज सुधारक, दार्शनिक, इतिहासकार और ओजस्वी वक्ता भी थे। हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा (हिन्दुत्व) को विकसित करने का बहुत बडा श्रेय सावरकर को जाता है। वे एक ऐसे इतिहासकार भी हैं जिन्होंने हिन्दू राष्ट्र की विजय के इतिहास को प्रामाणिक ढँग से लिपिबद्ध किया है। उन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था।

वीर सावरकर का प्रारंभिक जीवन

वीर सावरकर का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था। वीर सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को नासिक के भगूर गांव में हुआ था। उनके पिता दामोदर पंत गांव के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में जाने जाते थे। जब विनायक नौ साल के थे तभी उनकी माता राधाबाई का देहांत हो गया।

वीर सावरकर का शैक्षणिक जीवन

वीर सावरकर ने शिवाजी हाईस्कूल नासिक से 1901 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। सावरकर बचपन से ही बागी प्रवित्ति के थे। जब वे ग्यारह वर्ष के थे तभी उन्होंने वानर सेना नाम का समूह बनाया था। बाल गंगाधर तिलक को ही सवारकर अपना गुरु मानते थे। वर्ष 1901 मार्च में उनका विवाह यमुनाबाई से हो गया था। वर्ष 1902 में उन्होंने स्नातक के लिए पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज में दाखिला लिया। वर्ष 1906 जून में बैरिस्टर बनने के लिए वे इंग्लैण्ड चले गए। राष्ट्रीय कार्यकर्ता श्यामजी कृष्णा वर्मा ने कानून की पढाई पूरी करने हेतु विनायक को इंग्लैंड भेजने में सहायता की, उन्होंने विनायक को शिष्यवृत्ति भी दिलवाई। उन्होंने वहीं पर आजाद भारत सोसाइटी (Free India Society) का गठन किया। मई 1909 में इन्होंने लन्दन (Gray’s Inn law college) से बार एट ला (वकालत) की परीक्षा उत्तीर्ण की, परन्तु उन्हें वहाँ वकालत करने की अनुमति नहीं मिली।

राजनीति में सक्रिय योगदान

इंग्लैण्ड से कानून की पढाई पूरी कर भारत वापस आने के बाद वे पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हो गए। वे ब्रिटिश शासन से लगातार लोहा लेते रहे। 1904 में वीर सावरकर ने पूना में ‘अभिनव भारती’ नामक एक ऐसे क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य आवश्यकता पड़ने पर बल-प्रयोग द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करना था। आज़ादी पाने के मक़सद से काम करने के लिए उन्होंने एक गुप्त सोसायटी बनाई थी, जो ‘मित्र मेला’ के नाम से जानी गई। उन्होंने 23 जनवरी 1924 को रत्नागिरी हिंदू सभा का गठन किया और भारतीय संस्कृति और समाज कल्याण के लिए काम करना शुरू किया। थोड़े समय बाद सावरकर तिलक की स्वराज पार्टी में शामिल हो गए और बाद में हिंदू महासभा नाम की एक अलग पार्टी बना ली। वर्ष 1937 में अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने और आगे जाकर भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा भी बने।

वीर सावरकर की क्रांतिकारी रचनाएं

वीर सावरकर ने अनेक ग्रंथों की रचना की, जिनमें ‘भारतीय स्वातंत्रय युद्ध’, मेरा आजीवन कारावास’ और ‘अण्डमान की प्रतिध्वनियां’ अधिक प्रसिद्ध हैं। इंडियन सोशियोलाजिस्ट और तलवार नामक पत्रिकाओं में उनके अनेक लेख प्रकाशित हुये, जो बाद में कलकत्ता के युगान्तर पत्र में भी छपे। जून, 1908 में इनकी पुस्तक ‘द इण्डियन वार ऑफ इण्डिपेण्डेंस – 1857’ तैयार हो चुकी थी परंतु ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटेन और भारत में उसके प्रकाशित होने पर रोक लगा दी। कुछ समय बाद उनकी यह रचना मैडम भीकाजी कामा की मदद से हॉलैंड में गुपचुप तरीके से प्रकाशित हुयी और इसकी प्रतियां फ्रांस पहुंची और फिर भारत भी पहुंचा दी गयीं। सावरकर ने इस पुस्तक में 1857 के सिपाही विद्रोह को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ स्वतंत्रता की पहली लड़ाई बताया था।

वीर सावरकर की क्रांतिकारी गतिविधियां

भारत की स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्षों में वीर सावरकर का नाम बेहद महत्त्वपूर्ण रहा है। युवावस्था में वो नई पीढ़ी के नेताओं बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चन्द्र पाल और लाला लाजपत राय से बहुत प्रेरित थे। लाल-बाल-पाल उस समय अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह करने के लिए स्वदेशी आन्दोलन की शुरुवात में लगे हुए थे। 1905 के बंग-भंग के बाद 1906 में ‘स्वदेशी’ का नारा देकर सावरकार ने विदेशी कपड़ों की होली जलाई। वे पहले भारतीय थे जिन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की। सावरकर ने ही वह पहला भारतीय झंडा बनाया था, जिसे जर्मनी में 1907 की अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम कामा ने फहराया था।
सावरकर ने गुप्त तरीके से किताबो में पिस्तौले रखकर भारत भिजवाई। सावरकर ने अपने मित्रो को बम बनाना और गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करने की कला सिखाई और इसे फ़ैलाने को कहा। 1909 में सावरकर के मित्र और अनुयायी मदन लाल धिंगरा ने एक सार्वजनिक बैठक में अंग्रेज अफसर कर्जन की हत्या कर दी। धींगरा के इस काम से भारत और ब्रिटेन में क्रांतिकारी गतिविधिया बढ़ गयी।

विनायक सावरकर की गिरफ्तारी और जेल

विनायक सावरकर को अंग्रेज सरकार ने हत्या की योजना और पिस्तौले भारत भेजने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया। आगे के अभियोग के लिए भारत ले जाने जाने की खबर पता चली तो सावरकर ने जहाज से फ्रांस के रुकते वक्त भाग जाने की योजना बनायी। सावरकर वाशरूम में एक रोशनदान से बाहर निकलकर समुद्र में तैरते हुए बाहर किनारे पर पहुचे। अब वो अपने मित्र का इंतजार कर रहे थे जो उनको कार में लेने आ रहा था। लेकिन उनके मित्र को आने में देरी हो गयी और सावरकर को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। एक विशेष न्यायालय द्वारा उनके अभियोग की सुनवाई हुई और उन्हें 1910 में आजीवन कालेपानी की सज़ा मिली। उनको अंडमान के सेलुलर जेलभेज दिया गया और लगभग 14 साल के बाद रिहा कर दिया गया। सावरकर ने कलम-काग़ज़ के बिना जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कवितायें लिखीं। कहा जाता है उन्होंने अपनी रची दस हज़ार से भी अधिक पंक्तियों को तब तक अपनी याददाश्त में सुरक्षित रखा जब तक वह किसी न किसी तरह देशवासियों तक नहीं पहुच गईं।

स्वतंत्रता के बाद सावरकर का जीवन

सावरकर ने पाकिस्तान निर्माण का विरोध किया और गांधीजी को ऐसा करने के लिए निवेदन किया। नाथूराम गोडसे ने उसी दौरान महात्मा गांधी की हत्या कर दी जिसमें सावरकर का भी नाम आया। सावरकर को एक बार फिर जेल जाना पड़ा परंतु साक्ष्यों के अभाव में उन्हें रिहा कर दिया गया। अपने जीवनकाल में सावरकर एक मात्र ऐसे व्यक्ति थे जिनको दो बार आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गयी थी। उनके द्वारा ही तिरंगे के बीच में धर्म चक्र लगाने का सुझाव सर्वप्रथम दिया गया था। आजादी के बाद उनको 8 अक्टूबर 1951 में उनको पुणे विश्वविद्यालयन ने डी.लिट की उपाधि दी। 1 फरवरी 1966 को उन्होंने मृत्युपर्यन्त उपवास करने का निर्णय लिया था। 26 फरवरी 1966 को उन्होंने मुम्बई में अपना पार्थिव शरीर त्याग दिया और चिर निद्रा में लीन हो गए।

सावरकर के कुछ प्रमुख कार्य

  • भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के केन्द्र लंदन में उसके विरुद्ध क्रांतिकारी आंदोलन संगठित किया था।
  • भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सन् 1905 के बंग-भंग के बाद सन् 1906 में ‘स्वदेशी’ का नारा दे, विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी।
  • भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्हें अपने विचारों के कारण बैरिस्टर की डिग्री खोनी पड़ी।
  • पहले भारतीय थे जिन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की।
  • भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सन् 1857 की लड़ाई को भारत का ‘स्वाधीनता संग्राम’ बताते हुए लगभग एक हज़ार पृष्ठों का इतिहास 1907 में लिखा।
  • भारत के पहले और दुनिया के एकमात्र लेखक थे जिनकी किताब को प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटिश और ब्रिटिशसाम्राज्य की सरकारों ने प्रतिबंधित कर दिया था।
  • दुनिया के पहले राजनीतिक कैदी थे, जिनका मामला हेग के अंतराष्ट्रीय न्यायालय में चला था।
  • पहले भारतीय राजनीतिक कैदी थे, जिसने एक अछूत को मंदिर का पुजारी बनाया था।
  • सावरकर ने ही वह पहला भारतीय झंडा बनाया था, जिसे जर्मनी में 1907 की अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम कामा ने फहराया था।
  • वे प्रथम क्रान्तिकारी थे, जिन पर स्वतंत्र भारत की सरकार ने झूठा मुकदमा चलाया और बाद में निर्दोष साबित होने पर माफी मांगी।