भारत ने 19 अप्रैल 2024 को निर्भय क्रूज मिसाइल (Nirbhay cruise missile) का सफल परीक्षण किया था. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने यह परीक्षण ओडिशा तट पर चांदीपुर एकीकृत परीक्षण रेंज में किया था. परीक्षण के दौरान इस मिसाइल ने 864 किमी से 1111 किमी प्रति घंटे की रफ्तार हासिल की थी.
निर्भय मिसाइल: मुख्य बिन्दु
निर्भय मिसाइल को स्वदेशी प्रौद्योगिकी क्रूज मिसाइल (Indigenous Technology Cruise Missile, ITCM) के रूप में भी जाना जाता है.
यह लंबी दूरी की सब-सोनिक क्रूज मिसाइल है. यह भारत की पहली स्वदेश निर्मित क्रूज मिसाइल है. इस मिसाइल को डीआरडीओ ने स्वदेशी रूप से विकसित किया है.
लॉन्च के समय निर्भय की लंबाई 6.0 मीटर, व्यास 0.5 मीटर और वजन 1,500-1,600 किलोग्राम था. यह 1,000 किलोमीटर की दूरी तक जमीन पर मौजूद लक्ष्य पर हमला कर सकती है.
इसमें एक ठोस प्रप्लशन बूस्टर मोटर का उपयोग किया जाता है जो लॉन्च के तुरंत बाद बंद हो जाती है और टर्बोजेट इंजन में बदल जाती है.
यह 100 मीटर से भी कम ऊंचाई पर 0.7 मैक (सब-सोनिक) गति से घूमने और परिभ्रमण करने में सक्षम है. यह दो स्टेज की मिसाइल है, पहले दौर में ठोस और दूसरे दौर में तरल ईंधन का इस्तेमाल होता है.
यह मिसाइल 200-300 किलोग्राम के परंपरागत हथियार ले जा सकती है. यह परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है. इसकी अधिकतम रेज 1500 किमी है.
इसमें टेरेन हगिंग कैपेबिलिटी भी है. यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें उस पर निशाना लगाकर उसे निष्क्रिय करना मुश्किल होता है.
यह मिसाइल जमीन से कम से कम 50 मीटर ऊपर और अधिकतम चार किमी ऊपर उड़कर लक्ष्य को तबाह कर सकती है.
इसमें ऐसी प्रणाली है कि यह मिसाइल रास्ते में अपनी दिशा बदल सकती है. यानी यह चलते फिरते टारगेट को भी निशाना बनाने में सक्षम है.
यह समुद्र और जमीन दोनों जगहों से दागी जा सकती है. यह मिसाइल समुद्र से कम ऊंचाई पर उड़ते हुए दुश्मन के रडार को चकमा देने में सक्षम है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2024-04-20 20:19:172024-04-21 20:28:33भारत ने निर्भय क्रूज मिसाइल का सफल परीक्षण किया
भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास संस्था लिमिटेड (इरेडा) ने गांधीनगर स्थित गिफ्ट सिटी में अपने एक कार्यालय की शुरुआत की है. यह कार्यालय विदेशी मुद्राओं में ऋण विकल्प प्रदान करने में विशिष्टता प्रदान करेगा.
मुख्य बिन्दु
इससे नेचुरल हेजिंग (जोखिम प्रबंधन रणनीति) की सुविधा प्राप्त होगी. साथ ही, हरित हाइड्रोजन और नवीकरणीय ऊर्जा विनिर्माण परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण लागत में भी काफी कमी आएगी.
सरकार ने राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत 2030 तक 5 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) से अधिक हाइड्रोजन उत्पादन के महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है. यह कदम इस मिशन के संदर्भ में महत्वपूर्ण है.
भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (इरेडा) एक सरकारी स्वामित्व वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्था (NBFC) है जो भारत में अक्षय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता परियोजनाओं को वित्तपोषित करती है.
इरेडा पवन, सौर, जलविद्युत और बायोमास सहित विभिन्न नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करती है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2024-04-19 20:19:152024-04-21 20:30:49इरेडा ने विदेशी मुद्राओं में ऋण विकल्प के लिए गांधीनगर में कार्यालय खोला
जैसलमेर में 1-10 अप्रैल तक भारतीय वायुसेना का सबसे बड़ा युद्धाभ्यास ‘गगनशक्ति’ (Gaganshakti Exercise) 2024 आयोजित किया गया था. इस युद्धाभ्यास को वायुसेना का सबसे बड़ा अभ्यास माना जा रहा है.
गगनशक्ति-2024: मुख्य बिन्दु
गगनशक्ति-2024 युद्धाभ्यास राजस्थान में जैसलमेर जिले की पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज में आयोजित किया गया था. युद्धाभ्यास में भारतीय थल सेना ने भी सहयोग दिया.
इस युद्धाभ्यास में भारतीय वायुसेना के करीब 10 हजार वायु सैनिकों ने भाग लिया था. अभ्यास में तेजस, राफेल, सुखोई 30, जगुआर, ग्लोबमास्टर, चिनूक, अपाचे, प्रचंड सहित कई लड़ाकू विमान व हेलीकॉप्टर्स की भागीदारी थी.
गगनशक्ति युद्धाभ्यास का आयोजन भारतीय वायुसेना द्वारा सामान्यतः प्रत्येक पाँच वर्ष में होता है। इससे पूर्व ‘गगन शक्ति’ अभ्यास का आयोजन वर्ष 2018 में किया गया था.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2024-04-12 01:20:412024-04-11 20:36:24भारतीय वायुसेना ने जैसलमेर में युद्धाभ्यास गगनशक्ति आयोजित किया
रूस ने हाल ही में भारत को इग्ला-एस (Igla-S) मैन पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम (MANPADS) की आपूर्ति की है. यह सतह-से-हवा में मार करने वाली बहुत कम दूरी की वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली है. इस हथियार की मदद से दुश्मन देश के हेलीकॉप्टर और फाइटर एयरक्राफ्ट को हवा में ही मार गिराया जा सकता है.
इग्ला-एस MANPADS: मुख्य बिन्दु
इग्ला-एस एक मानव-पोर्टेबल सतह-से-हवा में मार करने वाली वायु रक्षा प्रणाली (man-portable infrared homing surface-to-air missile system) है.
इसे किसी व्यक्ति या चालक दल द्वारा दुश्मन के विमान को गिराने के लिए फायर किया जा सकता है. इस मिसाइल प्रणाली का उद्देश्य भारतीय सेना की बहुत कम दूरी की वायु रक्षा क्षमताओं को बढ़ाना है.
नवंबर 2023 में, भारत ने 120 लॉन्चर और 400 मिसाइलों की खरीद के लिए रूस के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे.
उसी सौदे के तहत भारतीय सेना को 24 रूस निर्मित इग्ला-एस मैन पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम (MANPADS) के साथ 100 मिसाइलों का पहला बैच मिल गया है.
बाकी बची इन प्रणालियों को एक भारतीय कंपनी द्वारा रूस से Transfer of Technology के माध्यम से भारत में बनाया जाएगा.
इसमें लगी इग्ला-एस एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल का वजन 10.8 kg है. जबकि इस पूरे सिस्टम का वजन 18 kg है. इस एयर डिफेंस सिस्टम की लंबाई 5.16 फीट होती है और इसका व्यास 72 मिलिमीटर का होता है.
इसकी रेंज 5 से 6 किलोमीटर की है. यह मिसाइल 2266 km/hr की स्पीड से टारगेट की तरफ बढ़ती है और अधिकतम 11 हजार फीट तक जा सकती है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2024-04-11 20:37:372024-04-11 20:42:44रूस ने भारत को इग्ला-एस मैन पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम की आपूर्ति की
भारतीय डाक विभाग (इंडिया पोस्ट) ने दक्षिणी ध्रुव के पास बर्फीले महाद्वीप अंटार्कटिका में 5 अप्रैल 2024 को अपना तीसरा पोस्ट ऑफिस खोला. इसकी शुरुआत वेब लिंक के जरिए महाराष्ट्र सर्कल के मुख्य पोस्टमास्टर जनरल के.के. शर्मा ने की. अंटार्कटिका में खुले नए पोस्ट ऑफिस को एक्सपेरिमेंटल तौर पर पिनकोड MH- 1718 दिया गया है.
मुख्य बिन्दु
अंटार्कटिका में भारत के रिसर्च स्टेशन का नाम ‘भारती स्टेशन’ है. भारत इस बर्फीले, निर्जन इलाके में रिसर्च मिशन चलाता है जहां 50-100 वैज्ञानिक काम करते हैं.
भारत ने अंटार्कटिका में ‘दक्षिण गंगोत्री’ स्टेशन में अपना पहला पोस्ट ऑफिस खोला था. और दूसरा पोस्ट ऑफिस ‘मैत्री’ स्टेशन में 1990 में खुला था.
अंटार्कटिका में तीसरा पोस्ट ऑफिस खोलने के लिए 5 अप्रैल का दिन चुना गया क्योंकि इसी दिन नैशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (NCPOR) का 24वां स्थापना दिवस था.
अंटार्कटिका ‘अटलांटिक संधि’ द्वारा शासित है, जो किसी भी देश के क्षेत्रीय दावों को अलग रखता है और सैन्य गतिविधि या परमाणु परीक्षण पर प्रतिबंध लगाता है. यह रेखांकित करता है कि महाद्वीप का उपयोग केवल साइंटिफिक रिसर्च के लिए किया जा सकता है.
अंटार्कटिका एक ऐसी भूमि पर भारतीय पोस्ट ऑफिस खोलने का अनूठा अवसर देता है जो विदेशी है और हमारी नहीं है. इसलिए यह महाद्वीप पर उपस्थिति का दावा करने के संदर्भ में एक रणनीतिक उद्देश्य पूरा करता है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2024-04-10 20:20:412024-04-11 20:39:32पिनकोड MH-1718: इंडिया पोस्ट ने अंटार्कटिका में अपना तीसरा पोस्ट ऑफिस खोला
भारत ने 4 अप्रैल को अग्नि प्राइम मिसाइल का सफल परीक्षण किया था. यह परीक्षण भारतीय सेना की स्ट्रैटेजिक फोर्सेस कमांड ने डीआरडीओ के साथ मिलकर ओडिशा के डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप दे किया था. इससे पहले 7 जून 2023 को भी डीआरडीओ ने अग्नि प्राइम मिसाइल का सफल परीक्षण किया था.
अग्नि प्राइम: मुख्य बिन्दु
अग्नि प्राइम मिसाइल को इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलेपमेंट प्रोग्राम के तहत देश ही में विकसित किया गया है. इस प्रोग्राम के तहत पृथ्वी, अग्नि, त्रिशूल, नाग और आकाश जैसी मिसाइलें विकसित की गई हैं.
अग्नि प्राइम बैलिस्टिक मिसाइल एक मध्यम दूरी की मिसाइल है, जिसकी रेंज करीब 1200-2000 किलोमीटर के बीच है. यह मिसाइल अपनी सटीकता के लिए जानी जाती है.
यह मिसाइल परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है. इस मिसाइल पर 1500 से 3000 किलो तक वॉरहेड ले जाए जा सकते हैं.
इस मिसाइल में सॉलिड फ्यूल का इस्तेमाल किया जाता है. अग्नि प्राइम टू स्टेज मिसाइल है. यह पिछले अग्नि के वर्जन से हल्की है.
इस मिसाइल का वजन करीब 11 हजार किलोग्राम है. अग्नि मिसाइल सीरीज की यह सबसे नई और छठी मिसाइल है. इस मिसाइल को जल्द ही भारतीय सेना में शामिल किया जाएगा.
अग्नि 1 का परीक्षण साल 1989 में किया गया था. साल 2004 में जिस अग्नि मिसाइल को सेना में शामिल किया गया था उसकी मारक रेंज 700-900 किलोमीटर थी.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2024-04-05 20:30:002024-04-05 20:30:00परमाणु हमला करने में सक्षम अग्नि प्राइम मिसाइल का सफल परीक्षण
केंद्रीय जल आयोग (CWC) ने देश में सूख रहीं नदियों को लेकर हाल ही में हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की थी. इस रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ों के अनुसार भारत की नदियां लगातार सूख रही हैं.
CWC के आँकड़े: मुख्य बिन्दु
महानदी और पेन्नार के बीच पूर्व की ओर बहने वाली 13 नदियों में इस समय पानी नहीं है. इनमें रुशिकुल्या, बाहुदा, वंशधारा, नागावली, सारदा, वराह, तांडव, एलुरु, गुंडलकम्मा, तम्मिलेरु, मुसी, पलेरु और मुनेरु शामिल हैं.
आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा राज्यों के 86,643 वर्ग किमी क्षेत्र से बहती हुईं नदियां सीधे बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं. इस बेसिन में कृषि भूमि कुल क्षेत्रफल का लगभग 60 फीसदी है. विशेषज्ञों के मुताबिक, गर्मी के कारण पहले ही यह स्थिति चिंताजनक है.
देश के 150 प्रमुख जलाशयों में जल भंडारण क्षमता 36 फीसदी तक गिर चुकी है. छह जलाशयों में कोई जल भंडारण दर्ज नहीं किया गया है. वहीं, 86 जलाशय ऐसे हैं जिनमें भंडारण या तो 40 प्रतिशत या उससे कम है. इनमें से ज्यादातर दक्षिणी राज्यों, महाराष्ट्र और गुजरात में हैं.
11 राज्यों के लगभग 2,86,000 गांव गंगा बेसिन पर स्थित हैं, जहां पानी की उपलब्धता धीरे-धीरे घट रही है. विशेषज्ञों के मुताबिक, यह चिंता की बात है, क्योंकि यहां कृषि भूमि कुल बेसिन क्षेत्र का 65.57 फीसदी है.
नर्मदा, तापी, गोदावरी, महानदी और साबरमती नदी घाटियों में उनकी क्षमता के सापेक्ष क्रमशः 46.2 फीसदी, 56, 34.76, 49.53 और 39.54 फीसदी भंडारण रिकॉर्ड किया गया.
कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्य वर्षा की कमी के कारण सूखे से जूझ रहे हैं, जिससे देश के प्रमुख जलाशय सूख गए हैं. चिंताजनक बात यह है कि इसमें से 7.8% क्षेत्र अत्यधिक सूखे की स्थिति में है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2024-04-05 20:18:432024-04-05 20:18:43केंद्रीय जल आयोग रिपोर्ट: देश में सूख रहीं नदियां, 13 में नहीं बचा पानी
कच्चातिवु द्वीप (Katchatheevu Island) का मुद्दा हाल के दिनों में चर्चा में रहा है. दरअसल के. अन्नामलाई ने आरटीआई दायर कर कच्चातिवु के बारे में पूछा था. आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि सन 1974 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और श्रीलंका की राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके ने एक समझौता किया था. इसके तहत कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को औपचारिक रूप से सौंप दिया गया था.
मुख्य बिन्दु
कच्चातिवु द्वीप 285 एकड़ का हरित क्षेत्र है जो 1976 तक भारत का था. यह भारत के रामेश्वरम और श्रीलंका के नेदुन्तीवु के बीच पाक जलडमरूमध्य में स्थित है. यह बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है.
यह द्वीप सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है. यह द्वीप कई दशकों से दोनों देशों के बीच विवाद और मतभेद का विषय रहा जो वर्तमान समय में श्रीलंका द्वारा प्रशासित है.
साल 1974 में तत्कालीन PM इंदिरा गांधी ने श्रीलंकाई राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ 1974-76 के बीच चार समुद्री सीमा समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. इन्हीं समझौते के तहत कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया गया था.
भारत में कच्चातीवु का हस्तांतरण अवैध माना जाता है क्योंकि इसे भारतीय संसद द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया था. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बेरुबारी यूनियन मामले (1960) में फैसला सुनाया कि भारतीय क्षेत्र को किसी अन्य देश को हस्तांतरित करने के लिए संसद द्वारा संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से अनुमोदन किया जाना चाहिए.
कच्चातिवु का इतिहास
कच्चातिवू द्वीप का निर्माण 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण हुआ था. यह कभी 17वीं शताब्दी में मदुरई के राजा रामानद के अधीन था.
ब्रिटिश शासनकाल में यह द्वीप मद्रास प्रेसीडेंसी के पास आया. 1921 में श्रीलंका और भारत दोनों ने मछली पकड़ने के लिए भूमि पर दावा किया और विवाद अनसुलझा रहा. आजादी के बाद इसे भारत का हिस्सा माना गया.
साल 1974 में 26 जून को कोलंबो और 28 जून को दिल्ली में दोनों देशों के बीच इस द्वीप के बारे में बातचीत हुई. इन्हीं दो बैठकों में कुछ शर्तों के साथ इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया.
1974 के समझौते ने भारतीय मछुआरों को अपने जाल सुखाने और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए द्वीप के चर्च का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी.
हालाँकि, संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (IMBL) का 1976 में किया गया सीमांकन, 1974 के समझौते का स्थान ले लेता है, जिससे द्वीप पर इन गतिविधियों में संलग्न होने के भारतीय मछुआरों के अधिकार प्रभावी रूप से समाप्त हो जाते हैं.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2024-04-03 16:07:292024-04-03 16:07:29क्या है कच्चातिवु की कहानी, भारत सरकार ने इसे श्रीलंका को क्यों दिया था
भारत ने 31 मार्च 2024 को आकाश मिसाइल प्रणाली का सफल परीक्षण किया था. यह परीक्षण भारतीय सेना की पश्चिमी कमान ने किया था. आकाश मिसाइल प्रणाली दुश्मन के विमान या मिसाइल को हवा में नष्ट कर सकती है.
आकाश मिसाइल प्रणाली: मुख्य बिन्दु
आकाश मिसाइल सिस्टम की सिंगल यूनिट में चार मिसाइलें होती हैं. जो अलग-अलग टारगेट्स को ध्वस्त कर सकती हैं.
आत्मनिर्भर भारत पहल को बढावा देने के लिए आकाश मिसाइल प्रणाली को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित किया है.
आकाश मिसाइल डीआरडीओ द्वारा निर्मित एक मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है. इसकी मारक क्षमता 40 से 80 km है.
इसे इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (आईजीएमडीपी) के तहत विकसित किया गया है, जिसमें नाग, अग्नि और त्रिशूल मिसाइल और पृथ्वी बैलिस्टिक मिसाइल का विकास भी शामिल है.
भारतीय वायु सेना और भारतीय सेना के लिए दो मिसाइल संस्करण बनाए गए हैं. भारतीय सेना ने मई 2015 में आकाश मिसाइलों के पहले बैच को शामिल किया था.
पहली आकाश मिसाइल मार्च 2012 में भारतीय वायु सेना को सौंपी गई थी. मिसाइल को औपचारिक रूप से जुलाई 2015 में भारतीय वायु सेना में शामिल किया गया था.
आकाश मिसाइल सतह-से-हवा में मार करने वाली प्रणाली पूरी तरह से स्वायत्त मोड में काम करते हुए कई हवाई लक्ष्यों को साध सकती है.
प्रणाली में एक लॉन्चर, एक मिसाइल, एक नियंत्रण केंद्र, एक बहुक्रियाशील अग्नि नियंत्रण रडार, एक प्रणाली हथियार और विस्फोट तंत्र, एक डिजिटल ऑटोपायलट, C4I (कमांड, नियंत्रण संचार और खुफिया) केंद्र और सहायक जमीनी उपकरण शामिल हैं.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2024-04-02 15:58:182024-04-03 16:10:41आकाश मिसाइल प्रणाली का सफल परीक्षण, सतह से हवा में मार करने में सक्षम
असम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के कुछ जिलों में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (AFSPA) को अतिरिक्त छह महीने के लिए बढ़ा दिया है.
गृह मंत्रालय से इसकी अधिसूचना हाल ही में जारी की थी जो 1 अप्रैल, 2024 से प्रभावी होगी. गृह मंत्रालय ने, यह निर्णय इन पूर्वोत्तर राज्यों में कानून और व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा के बाद लिया है.
मुख्य बिन्दु
असम के चार जिलों से AFSPA को 1 अप्रैल से छह महीने के लिए बढ़ा दिया है. ये जिले हैं – तिनसुकिया, डिब्रूगढ़, चराइदेव और शिवसागर.
अरुणाचल प्रदेश में AFSPA को तिरप, चांगलांग और लोंगडिंग जिले सहित एक अन्य जिले के तीन पुलिस थाना क्षेत्र में छह महीने के लिए बढ़ाया गया है.
नागालैंड में दीमापुर, न्यूलैंड, चुमुकेदिमा, मोन, किफिरे, नोकलाक, फेक और पेरेन सहित पांच अन्य जिलों के 21 पुलिस थाना क्षेत्र में छह महीने के लिए AFSPA बढ़ाया गया है.
गृह विभाग ने अधिसूचना में कहा है कि इन ज़िलों को कानून-व्यवस्था की दृष्टि से अशांत क्षेत्र माना गया है और इसलिए अधिनियम की अवधि 30 सितंबर तक बढा दी गई है.
AFSPA क्या है?
AFSPA का पूरा नाम The Armed Forces (Special Powers) Act, 1958 है. यह अधिनियम 11 सितंबर 1958 को AFSPA लागू हुआ था. केंद्र सरकार या राज्यपाल पूरे राज्य या उसके किसी हिस्से में AFSPA लागू कर सकते हैं.
AFSPA के जरिए सुरक्षा बलों को कई खास अधिकार दिए गये हैं. इसके तहत सुरक्षा बलों को कानून के खिलाफ जाने वाले व्यक्ति पर गोली चलाने, सर्च और गिरफ्तारी का अधिकार है.
AFSPA के तहत किसी तरह की कार्रवाई करने पर सैनिकों के खिलाफ किसी तरह की कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है.
शुरू में यह पूर्वोत्तर और पंजाब के उन क्षेत्रों में लगाया गया था, जिनको ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित कर दिया गया था. इनमें से ज्यादातर ‘अशांत क्षेत्र’ की सीमाएं पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश और म्यांमार से सटी थीं.
अप्रैल 2022 में केंद्र ने नागालैंड, असम और मणिपुर के कई हिस्सों में AFSPA के तहत आने वाले क्षेत्रों में कमी की गयी थी.
2015 में त्रिपुरा, 2018 में मेघालय और 1980 के दशक में मिजोरम से इस अधिनियम को हटा लिया गया था. इन कटौतियों के बावजूद, जम्मू और कश्मीर में AFSPA लागू है.
कई राजनीतिक दल और संगठन AFSPA को हटाने की मांग कर रहे हैं. आलोचकों का तर्क है कि AFSPA के कारण मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है, जबकि समर्थकों का दावा है कि संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2024-03-31 20:15:182024-03-31 20:15:18असम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में AFSPA को छह महीने के लिए बढ़ाया गया
रक्षा मंत्रालय के तहत रक्षा उत्पादन विभाग ने 28 मार्च को गुणवत्ता आश्वासन महानिदेशालय (DGQA) के पुनर्गठन के लिए अधिसूचना जारी की थी. इस पुनर्गठन का उद्देश्य गुणवत्ता जांचने वाली प्रक्रियाओं और परीक्षणों में तेजी लाना है.
मुख्य बिन्दु
इस पुनर्गठन का मकसद गुणवत्ता आश्वासन पद्धति (Quality Assurance methodology) में बदलाव लाना और ओएफबी के निगमीकरण के बाद महानिदेशालय की संशोधित भूमिका को शामिल किया जाना है.
रक्षा मंत्रालय के अनुसार विभाग के पुनर्गठन के सभी स्तरों पर संयंत्र विनिर्माण के लिए प्रभावी तकनीकी सहयोग मिलेगा और गुणवत्ता में एकरूपता सुनिश्चित होगी.
नई संरचना में पृथक रक्षा परीक्षण और मूल्यांकन संवर्धन महानिदेशालय का भी प्रावधान होगा, जिससे परीक्षण सुविधाओं का पारदर्शी आवंटन हो सकेगा.
इसके अलावा, सभी स्तरों पर संपूर्ण उपकरण/हथियार प्लेटफॉर्म के लिए एकल बिंदु तकनीकी सहायता सक्षम करेगी और उत्पाद की गुणवत्ता भी सुनिश्चित करेगी.
DGQA के पुनर्गठन और सुधार के लिए चल रहे उपायों से देश के भीतर हथियार तैयार करने वालों के साथ-साथ आत्मनिर्भर भारत अभियान को गति मिलेगी. वहीं, उच्च गुणवत्ता वाले रक्षा उत्पादों के निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा.
भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हाल ही में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम (Plastic Waste Management (Amendment) Rules) 2024 लागू किया है. ये नियम प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 में संशोधन कर लाया गया है.
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम 2024: मुख्य बिन्दु
नए नियम के तहत डिस्पोजेबल प्लास्टिक उत्पादों के निर्माताओं के लिए उन्हें ‘बायोडिग्रेडेबल’ (जैवनिम्नीकरणीय) के रूप में लेबल करना अधिक कठिन हो जाएगा.
नए नियम के अनुसार अब यह आवश्यक है कि बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक न केवल विशिष्ट वातावरण में जैविक प्रक्रियाओं के माध्यम से विघटित हो, बल्कि जैविक प्रक्रियाओं द्वारा बिना कोई माइक्रोप्लास्टिक (सूक्ष्म प्लास्टिक) छोड़े पूर्ण रूप से नष्ट होने में सक्षम हो.
1 µm से 1,000 µm के बीच के आयामों वाले पानी में अघुलनशील ठोस प्लास्टिक कणों को माइक्रोप्लास्टिक के रूप में परिभाषित किया जाता है. हाल के वर्षों में ये नदियों और महासागरों को प्रभावित करने वाले प्रदूषण के एक प्रमुख स्रोत के रूप में देखे गए हैं.
बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक पर बढ़ता ध्यान केंद्र सरकार द्वारा 2022 में सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने और अन्य उपायों के साथ-साथ बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक को अपनाने की सिफारिश करने के बाद आया है.
विनिर्माताओं को कंपोस्टेबल अथवा बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक से कैरी बैग और वस्तुओं का उत्पादन करने की अनुमति है. उन्हें अपने उत्पादों के विपणन अथवा बिक्री से पूर्व केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से प्रमाण-पत्र प्राप्त करना होगा.
कम्पोस्टेबल प्लास्टिक, उन सामग्रियों को कहते हैं जिन्हें कवक, बैक्टीरिया या रोगाणुओं द्वारा तोड़ा जा सकता है. ये प्लास्टिक, मक्का, आलू, टैपिओका स्टार्च, सेलूलोज़, सोया प्रोटीन और लैक्टिक एसिड जैसी नवीकरणीय सामग्रियों से बनाए जाते हैं.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2024-03-30 19:55:012024-03-31 20:10:30प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम 2024 लागू किया गया